भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) प्रमुख डॉ. श्रीधर पाणिकर सोमनाथ ने गुवाहाटी के प्रागज्योतिषपुर विश्वविद्यालय के कार्यक्रम के दौरान कहा कि विज्ञान हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाता है। विज्ञान में लोगों की रुचि और अरुचि इस बात पर निर्भर करता है कि उसे हमारे समक्ष कैसे प्रस्तुत किया जाता है। संगीत सभी को पसंद होता है, उनकी उसे इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है, जिसके करना उससे हमें खुशी और आनंद मिलता है।
इसी तरह जैसे हम विज्ञान को हमारे जीवन के समक्ष प्रस्तुत करेंगे और वैसे ही हमें उसके प्रति अनुभूति होगी। गौरतलब है कि एयरोस्पेस इंजीनियर और रॉकेट टेक्नोलॉजिस्ट सोमनाथ का जन्म केरल में साल 1963 में जुलाई के महीने में अरूर अलप्पुझा जिले में हुआ था। उन्होंने अपने स्कूल की पढ़ाई सेंट अगस्टिन हाई स्कूल से पूरी की।
इसके बाद उन्होंने मैकेनिकल में बैचलर आफ टेक्नोलॉजी की डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा इन्होंने मास्टर इन एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की है। इन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी की पढ़ाई की। वे वर्ष 1985 में इसरो से जुड़े और इसके बाद अलग-अलग पदों पर इस संस्था में काम किया। उनकी शुरुआत विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र से इसके निर्देशक के तौर पर हुई।
यह केंद्र इसरो का प्रमुख केंद्र है, जो लॉन्च व्हीकल के डिजाइन के लिए जिम्मेदार है। वर्ष 2014 में नवंबर महीने तक प्रस्ताव और अंतरिक्ष अध्यादेश इकाई के उप निदेशक के रूप में कार्य किया और वह अपने प्रारंभिक चरण
के दौरान ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना से भी जुड़े थे। जून 2015 तक वह प्रक्षेपण वाहनों और अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए तरल प्रणोदन प्रणाली डिजाइन करने के प्रभारी थे। उन्होंने केंद्र के निदेशक के रूप में भी काम किया। उन्होंने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में काम किया है। उन्होंने देश का पहला एवं दूसरा चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 अभियान से जुड़े हुए थे।
चंद्रयान-2 ने तो चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर को सफलतापूर्वक उतारा। वह देश के पहले मानव अंतरिक्ष में अभियान गगनयान का भी हिस्सा रहे। उन्हें जब इसरो का अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो उस समय सबसे बड़ी चुनौती चंद्रयान-3 मिशन को सफल बनाने की थी। मालूम है कि 2019 में जब चंद्रयान 2 अभियान असफल हो गया था। इसके बाद पूरे देश में मायूसी छा गई थी। इसके बाद इसरो चंद्रयान-3 अभियान में लग गया।
कड़ी परिश्रम और मेहनत के बाद जब पिछले वर्ष 23 अगस्त को चंद्रयान 3 अभियान को लांच किया गया। जब चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर लैंड कर गया तो देश में खुशी के लहर दौड़ गई। उनका कार्यकाल इसरो के अध्यक्ष के रूप में काफी सफल साबित हुआ। इसरो के इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों से अंकित किया जाएगा। इन्होंने न केवल अपने जीवन को इसरो के लिए समर्पित किया बल्कि इस संस्थान को नई गति भी दी। इनका विवाह वलसाला नामक महिला से हुआ और इनके दो बच्चे माधव एवं मालिका है। अपने करियर के दौरान उन्हें पद्मश्री (2022), शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार (2021), डी.एस. कोठार पुरस्कार (2020), इसरो वैज्ञानिक पुरस्कार (2019) से नवाजा गया है। उनके कार्यों के आकलन पुरस्कार से नहीं किया जा सकता।
हालांकि यह सम्मान उन्हें जरूर आगे और बेहतर करने के लिए प्रेषित कर सकता है।