सैटेलाइट गांव एवं बुलेट ट्रेन के बाद चीन ने देश के दक्षिण पश्चिम में एक बड़े जलविद्युत परियोजना की दो इकाइयां शुरू करने से भारत की चिंताएं बढ़ गई है। अगर इस बात को सही माने तो यह आने वाले समय में खतरों का संकेत कहा जा सकता है। सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत परियोजना है।
गौरतलब है कि बैहीतान जलविद्युत स्टेशन की दो इकाइयों को उस वक्त शुरू किया गया है, जब सत्तारूढ़ दल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन (सीपीसी) एक जुलाई को अपनी शताब्दी समारोह मनाने की तैयारी कर रहा है। यह बांध जीन्शा नदी पर स्थित है, जो यांगत्सी नदी का ऊपरी हिस्सा है और यह दक्षिण पश्चिमी प्रांत युन्नान एवं सिचुआन तक फैला हुआ है।
चीन ने यांगत्सी नदी पर तीन बड़े बांध बना लिए हैं और भारत के अरूणाचल प्रदेश के नजदीक तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर रहा है। सरकारी शिन्हुआ संवाद समिति के अनुसार इस परियोजना की कुल क्षमता 1.6 करोड़ किलोवाट है और इसमें 16 विद्युत उत्पादन इकाइयां हैं, जिनमें प्रत्येक की क्षमता दस लाख किलोवाट की है।
वैसे भी देखा जाए तो चीन लगातार अपने ढांचागत विकास को नया रूप दे रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही तिब्बत के पहाड़ी क्षेत्र में पहली बुलेट ट्रेन शुरू की है, जो प्रांतीय राजधानी ल्हासा और निंयाग्ची से जोड़ती है। यह इलाका भारत के अरुणाचल प्रदेश के पास स्थित है। बताया जाता है कि चीन एक बार फिर उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल रणनीति पर काम करने में जुटी है। उसका मकसद भारत पर चौतरफा दबाव बनाना है।
बुलेट ट्रेन चलाना भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है। अगर खुदा न खसता भारत के साथ युद्ध करने की नौबत आती है तो वह आसानी से अपने सैनिकों को यहां तक पहुंचा सकता है। उसकी रणनीति यही तक सीमित नहीं है।
वह बांग्लादेश और म्यांमार की सैन्य सरकार को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है। उसका सीधा सा मकसद बांग्लादेश तक सड़क मार्ग का निर्माण करना है। उधर भारत ने भी दोनों देशों के बीच चल रहे विवादों के बीच ही 50 हजार अतिरिक्त सैनिकों को सीमा पर भेजा है। भारत ने पिछले कुछ महीनों में चीनी सीमा से सटे तीन अलग-अलग इलाकों में सैन्य टुकड़ियों और युद्धक विमानों को तैनात किया है।
यह कदम चीन की विस्तारवादी नीति पर लगाम कसने और चीन सीमा पर कड़ी निगरानी के लिए उठाया गया है। भारत ने अब तक करीब दो लाख सैनिकों को तैनात कर किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 40 फीसदी अधिक है। ब्लूमबर्ग ने चार अलग-अलग सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी। अंतर्राष्ट्रीय खबरों की माने तो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत ने 50 हजार सैनिकों को भेजा है। साथ ही लड़ाकू विमानों को भी अलर्ट पर रखा है। हालांकि भारतीय सेना और प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
जानकारों की माने तो भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का तीन दिवसीय लद्दाख दौरा इसी कूटनीति का हिस्सा है। भारत भी अपनी ओर से हर वार का पलटवार देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। चीन के गलत एवं खतरनाक इरादों को भापते हुए भारत में भी अब पाकिस्तान से ज्यादा चीन को लेकर रणनीति बनाने पर जोर देने लगी है।
हालांकि यह बदलाव गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के धोखे से हमले के बाद आया है। भारत भी अब ऑफेंसिव डिफेंस की रणनीति पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी तरफ भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि चीनी पीएलए के खिलाफ नरम रुख को लेकर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि उन्हें महसूस हो रहा है कि टकराव वाली जगह से सिर्फ भारत ही पीछे हटा, जबकि चीन आगे बढ़ गया। वे चीन को लेकर भारत सरकार के रवैये से वो पूरी तरह से असंतुष्ट हैं।
उन्होंने कहा कि जिस समय हमें यह पता लगा कि चीन के सैनिक हमारी सीमा के अंदर आए, उसी समय हमें भगा देना चाहिए था। हमने गलवान और कैलाश रेंज में यह करके दिखाया, लेकिन हम वापस से बातचीत की ओर चले गए। ये बातचीत का शौक क्यों है, हमें समझ नहीं आती है।
वहीं दूसरी ओर इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता तथा अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित डॉ दिव्यज्योति सैकिया कहते हैं कि भारत को चीन के खिलाफ खड़े कदम उठाने चाहिए। उनका मानना है कि भारत सरकार मीडिया पर ज्यादा प्रचार कर रही है। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
चीन जिस तरह से भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर रहा है भारत की ओर से उसका मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया जा रहा है। इस संदर्भ में कठोर नीति अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से अपील की कि वे चीन की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखते हुए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। सवाल देश से जुड़ा हुआ है इसीलिए किसी तरह का कोई समझौता नहीं होना चाहिए।