अरुणिमा सिन्हा एक भारतीय पर्वतारोही और पूर्व वालीबाल खिलाड़ी हैं। वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं। उनका जन्म 20 जुलाई 1989 में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ और उन्हें बचपन से ही खेल में रुचि थी। उनके पिता भारतीय सेना में थे और उनकी माँ स्वास्थ्य विभाग में पर्यवेक्षक थीं। उसकी एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई है। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां ने उनके परिवार की देखभाल करने की कोशिश की। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर से पूरी की। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने उत्तरकाशी के नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग नामक कॉलेज से पर्वतारोहण का कोर्स किया। वह अर्धसैनिक बलों में शामिल होना चाहती थी। उन्हें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) से बुलावा आया और वह दिल्ली की यात्रा पर निकल पड़ी। इसी दौरान हुए एक हाथ से थे उनकी जिंदगी बदल दी। 11 अप्रैल 2011 को वह पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। रात के लगभग एक बजे कुछ शातिर अपराधी ट्रैन के डिब्बो में दाखिल हुए। उन्हें अकेला देखकर उनके गले की चैन छिनने का प्रयास किया। उनके विरोध करने पर उन शातिर चोरो ने उन्हें चलती ट्रैन से बाहर फेंक दिया। यह घटना बरेली की है।
इस हादसे में उनका बाया पैर पटरियों के बीच में आ जाने से कट गया। पूरी रात वह कटे हुए पैर के साथ दर्द से चीखती-चिल्लाती रही। इस दौरान उसे सुनने वाला कोई नहीं था। एक तरह वह अपने जीवन से हार मान चुकी थी। लेकिन कहते हैं न की करने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। शायद उनके किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इसी दौरान कुछ लोगों की नजर उन पर पड़ी और वह उन्हें नई दिल्ली के अखिल भारतीय विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया, जहा वह अपने जिंदगी और मौत से लगभग चार महीने तक लड़ती रही। हालांकि इस जंग में उनकी जीत हुई। उनके बाये पैर को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया। अब वह सब की नजरों में दिव्यांग बन चुकी थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उन्होंने खुद को मजबूत करते हुए अपने हौसले को बुलंद रखा। उन्होंने अपने शारीरिक कमजोरी को अपना हथियार बनाया और दुनिया के सभी सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को लांघने का लक्ष्य तय किया है। इस क्रम में उन्होंने अफ्रीका की किलिमंजारो और यूरोप की एलब्रुस चोटी पर तिरंगा लहराया।
उन्होंने साहस का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया है। अरुणिमा ने इस साहसिक कार्य के बाद भी अपने परिवार, समाज, और देश के लिए योगदान देना जारी रखा है।
उन्होंने एक फाउंडेशन अरुणिमा सिन्हा इंफिनिटी आर्मी की स्थापना की है, जो विभिन्न सामाजिक कार्यों के माध्यम से लोगों की मदद करती है। इसके अलावा उन्होंने अपने आत्मकथा बी माइ इंस्पिरेशन के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की प्रेरणा दी है। उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली इस अरुणिमा सिन्हा को सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया। साल 2016 में अरुणिमा सिन्हा को अम्बेडकरनगर रत्न पुरस्कार से अम्बेडकरनगर महोत्सव समिति की तरफ से नवाजा गया।