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बच्चों को सपने देखने से वंचित करने से बढ़कर कोई अपराध नहीं है। यह कथन नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का है, जो भारतीय बाल अधिकार और शिक्षा के पक्षधर और बाल-श्रम के खिलाफ लड़ने वाले कार्यकर्ता नहीं बल्कि योद्धा के रूप में जाने पहचाने जाते हैं।
उनका जन्म 11 जनवरी को 1954 को मध्यप्रदेश के विदिशा में राम प्रसाद शर्मा एवं चिरोंजी के परिवार में हुआ। उन्होंने विदिशा से ही अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद यहीं से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की उपाधि हासिल की। साथ ही इन्होंने हाई-वोल्टेज इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद इन्होंने कुछ समय तक एक काॅलेज में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं भी दी, लेकिन इस काम में उनका मन ज्यादा दिन तक नहीं लगा। बचपन से ही उनका झुकाव समाज सेवा की ओर था। काॅलेज में पढ़ाते समय ही उन्होंने निर्णय लिया कि वे अपना जीवन समाज को समर्पित कर देंगे और बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए ही काम करेंगे।
There is no greater violence than to deny the dreams of our children.
वर्ष 1980 में उन्होंने अपने कैरियर को अलविदा कहते हुए बाॅन्डेड लेबर लिबरेशन फ्रंट के महासचिव बन गए। इसके बाद उन्होंने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करना शुरू किया, लेकिन उनके काम को पहचान बचपन बचाओ आंदोलन से मिली। वर्ष 1983 में बालश्रम के खिलाफ बचपन बचाओ आंदोलन की स्थापना की। उनके काम की तारीफ पूरी दुनिया में हुई। इसके बाद उनके कदम अपने आप दक्षिण एशिया के बच्चों की तरफ बढ़ चले। उनके प्रयासों से 80 हजार से ज्यादा बच्चों का जीवन सुधरा है और उन्हें बेहतर शिक्षा तथा जीवनयापन के अवसर मिले। उन्होंने अपने काम को इस तरह अंजाम दिया कि आज वे उस के प्रतीक के रूप में पहचाने जाते हैं।
उनके इस आंदोलन को जनआंदोलन में तब्दील करने के लिए दुनिया भर के गैर सरकारी संगठनों, शिक्षकों और ट्रेड यूनियन्स जुड़ गए। उन्होंने बच्चों से काम लेने को मानव अधिकारों से जोड़ा और इसके खिलाफ आवाज उठाई है। वे इसे बच्चों के साथ होने वाले वैश्विक शोषण का सबसे प्रचलित रूप मानते हैं। वे यह भी कहते हैं कि इसकी वजह से ही दुनिया में गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और जनसंख्या वृद्धि जैसे मुद्दे आज मानवता के सामने खड़े हुए।
I refuse to accept that the shackles of slavery can ever be stronger than the quest for freedom.
यूनेस्को ने उन्हें अपने द्वारा गठित बाॅडी ग्लोबल पार्टनरशिप फोर एजूकेशन में सदस्य बनाया। इसके अलावा भी उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और कमेटियों के सदस्य नियुक्त किए, जिनमें सेंटर फाॅर विक्टिम ऑफ टार्चर-संयुक्त राज्य अमेरिका द इंटरनेशनल लेबर राइट फंड और इंटरनेशनल कोकोआ फाउंडेशन शामिल है। उनके कार्यों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों व पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है।
इन पुरस्कारों में वर्ष 2014 का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी शामिल है, जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया। उनके परिवार में पत्नी सुमेधा, पुत्र भुवन रिभु तथा पुत्री अस्मिता सत्यार्थी हैं।