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भारतीय राजनीति का जब भी जिक्र होता है तो आंखों के सामने बस भ्रष्टाचार, घोटाला, परिवारवाद जैसी संज्ञाओं वाली नकारात्मक छवि उभर कर सामने आती है। राजनीति के बारे में लोगों का नजरिया यही रहा है कि इसमें ईमानदारी का कोई स्थान नहीं। हालांकि बदलते समय के साथ लोगों की सोच भी बदल रही है। अब पढ़े लिखे व्यक्ति राजनीति के मैदान में उतर रहे हैं। उनकी नई सोच और लोगों से उनका व्यवहार ही उन्हें सफल बना रही है। ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे इर्द-गिर्द नजर आते हैं।
जहां तक ईमानदारी की बात करें तो उनमें कूट-कूट कर भरा दिखाई देता है। यही कारण है कि पिछले एक दशक में युवाओं की एक ऐसी फौज राजनीति की मैदान में उतरी है और सफलता भी हासिल की है। पुरानी पीढ़ियों में भी कई ऐसे राजनेता है, जिनकी छवि ही उनकी पहचान रही है। इसी पहचान के बदौलत उन लोगों ने ऐसी लोकप्रियता हासिल की है, जो दूसरों को भी राजनीति में आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यही इनकी ताकत भी है। ऐसे ही ताकत के मालिक सर्वानंद सोनोवाल को भी कहा जा सकता है।
राजनीति में भ्रष्टाचार एवं घोटाले से परे नाम में शुमार सोनोवाल सच्चे मन से राजनीति के माध्यम से लोगों की भलाई करना चाहते हैं। यहां तक की इनके ऊपर कोई दाग भी नहीं है। लोगों की नजरों में उनकी छवि ईमानदार नेता वाली रही है।
You cannot win people’s hearts with cheap politics, nor can you win the world with cheap politics.
राज्यसभा सांसद सोनोवाल असम के 14वें मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2001 में असम की क्षेत्रीय राजनीतिक दल असम गण परिषद (अगप) का दामन थामा और विधायक बन गए। वर्ष 2014 में वह असम के लखीमपुर के सांसद बने। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में वो खेल एवं युवा मामलों के मंत्री बनाए गए। मई 2016 में हुए असम विधान सभा चुनाव में वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। चुनावों में पार्टी के विजयी होने के बाद उन्होने 26 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। फिलहाल दूसरी बार मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री और आयुष मंत्री बनाया गया है।
इन्होने वर्ष 2012 से 2014 तक तथा वर्ष 2015 से 2016 तक भाजपा के असम इकाई के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1962 को असम के डिब्रूगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम जीवेश्वर सोनोवाल और उनकी माता का नाम दिनेश्वरी सोनोवाल है। उन्होंने डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से स्नातक किया। फिर डिब्रूगढ़ से कानून और फिर गौहाटी विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन में शिक्षा प्राप्त की। यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत भी की। वे छात्र जीवन के दौरान ही छात्र राजनीति में भी संलग्न रहे।
उन्होंने अपने राजनीतिक केरियर की शुरुआत अखिल असम छात्र संघ (आसू) से की थी। वे इसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं। डिब्रूगढ़ में पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन सिंह को हराकर सोनोवाल ने पहली बार साल 2004 में लोकसभा में कदम रखा। अगप में हुई कुछ असमानताओं के चलते उन्होंने साल 2011 में भाजपा का दामन थामा। पार्टी में शामिल होते हैं पहले उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सदस्य एवं फिर राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई।
सोनोवाल ने अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले गये और कोर्ट ने आईएमडीटी एक्ट को खत्म करने का आदेश दिया। कोर्ट ने इस कानून को गलत ठहराया। भाजपा ने अपनी सर्वोच्च नीति निर्धारक इकाई संसदीय बोर्ड में बड़ा बदलाव करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इससे हटा दिया और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा तथा केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित छह नए चेहरों को इसमें शामिल किया।
इस बदलाव की चर्चा उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक है। पार्टी ने बोर्ड में बड़ा बदलाव कर पूर्वोत्तर से दक्षिण तक साधने की कोशिश की है। सबसे हैरान कर देने वाला फैसला केंद्रीय मंत्री सोनोवाल को इसमें शामिल करना है। एक तरह से सोनोवाल के सहारे कई निशाने साधने की जुगत लग रही है। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है।
पूर्वोत्तर से सोनोवाल पहले भाजपा नेता हैं, जिन्हें दोनों ही समिति में जगह मिली है। पार्टी ने यह कदम उठाकर सियासी संदेश देने के साथ-साथ सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कवायद की है। वे चार दिन की यात्रा पर ईरान गए थे। इस दौरान वह चाबहार बंदरगाह के पहले चरण की प्रगति का समीक्षा की और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के अवसरों पर भी चर्चा की।
वहीं अब कहा जा रहा है कि उन्हें पार्टी जल्द ही अध्यक्ष की कुर्सी सौंपने की योजना बना रही है। हालांकि इस पर अब तक अधिकारी मोहर नहीं लगी है। इसमें कोई संदेह नहीं की पार्टी में उनका कद पहले के मुकाबले काफी बढ़ा है। देश और समाज की सेवा के लिए आजीवन अविवाहित रहे सोनोवाल देश और विदेश के राजनेताओं के बीच काफी लोकप्रिय है। उनकी साफ-सुथरी छवि ही उनकी पहचान है। यही कारण है कि युवाओं के बीच उनका अच्छा खासा क्रेज है और वे उन से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रख रहे हैं। उनकी विशेष रुचि जीवन में महत्वपूर्ण बातें जानने और मित्रता के विस्तार के लिए विद्वान लोगों से बातचीत करना शामिल है। उन्हें क्रिकेट, फुटबॉल और बैडमिंटन खेलना पसंद है।