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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत ने एक नया इतिहास रचा जब द्रौपदी मुर्मू ने देश के सर्वोच्च सांविधानिक पद की शपथ ली। वे देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति होने के साथ आजाद भारत में पैदा होने वाली देश की पहली राष्ट्रपति हैं। कभी शिक्षक रहीं मुर्मू इलाके के विधायक के कहने पर राजानीति में आईं। 1997 में पहला चुनाव पार्षद का लड़ा और जीत गई।
वैसे देखा जाए तो उनके लिए ये सफर इतना आसान नहीं था। यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें न जाने कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सफर में कई बाधाएं भी आई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ती ही चली गई। शायद यही कारण है कि आज उनकी चर्चा केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हो रही है।
उनका जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखने वाली द्रोपदी के पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू है, जो पेशे से एक किसान थे। उनके दो भाई हैं।उनका विवाह श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। उनका बचपन बेहद अभावों और गरीबी में गुजरा। फिर भी उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए वे शिक्षक बन गईं। उनका जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था।
The women of every household in the Tribal area, will have to be educated.
-Draupadi Murmu
संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखने वाली द्रोपदी के पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू है, जो पेशे से एक किसान थे। उनके दो भाई हैं।उनका विवाह श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। उनका बचपन बेहद अभावों और गरीबी में गुजरा। फिर भी उन्होंने शिक्षा से मुंह नहीं मोड़ा। उनकी स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद उन्होंने स्नातक करने के लिए भुवनेश्वर के रामा देवी महिला महाविद्यालय में दाखिला ले लिया। वह अपने गांव की पहली लड़की थीं, जिन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की।

महाविद्यालय में ही पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात भुवनेश्वर के एक महाविद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं श्याम चरण से हुई। मुलाकात दोस्ती और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। वे दोनों एक दूसरे के साथ अपना जीवन बिताना चाहते थे। हालांकि द्रोपदी के पिता इस रिश्ते से खुश नहीं थे। पहले तो उनके पिता ने इंकार कर दिया, लेकिन बेटी की ज़िद को देखते हुए आखिरकार पिता ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी।
विवाह के मौके पर श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े दहेज के रूप में दिए गए। गौरतलब है कि संथाल समुदाय में लड़की के घरवालों को लड़के की तरफ से दहेज दिया जाता है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की और इस पेशे को उन्होंने अपनी बेटी के लिए अपनाया। हालांकि उन पर एक के बाद एक मुसीबत टूट पड़ी। 1984 में छोटी बेटी की मौत के बाद 2009 में 25 साल के बेटे लक्ष्मण की भी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। बेटे की मौत के सदमे से अभी वह उभर भी नहीं पाई थीं कि 2013 में दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। वह इससे पूरी तरह से टूट चुकीं थीं।
Right to education is the right of every boy and girl, regardless of background, to deprive them is like animalistic behaviour.
-Draupadi Murmu
अपने इस दुख से उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। वह राजस्थान के माउंट आबू स्थित ब्रह्कुमारी संस्थान से जुड़ गई। यहां आध्यात्मिकता से जुड़ने के कारण उनका बेचैन मन शांत होने लगा। 2014 में बैंक में कार्यरत उनके पति भी चल बसे। अब परिवार में केवल विवाहित बेटी इतिश्री मुर्मू हैं, जो बैंक में नौकरी करती हैं। 1997 में उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा।

ओडिशा के राइरांगपुर जिले में पार्षद चुनी गईं। इसके बाद वह जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी चुनी गईं। वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ीं। राइरांगपुर विधानसभा से विधायक चुने जाने के बाद उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया।2002 में उन्होंने ओडिशा सरकार में मत्स्य एवं पशुपालन विभाग का राज्यमंत्री बनाया गया। 2006 में उन्हें भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2009 में वह राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतीं। इसके बाद 2009 में वह लोकसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन जीत नहीं पाईं।
2015 में द्रौपदी को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया। 2021 तक उन्होंने राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएं दीं। झारखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप उन्होंने अपनी ही सरकार द्वारा विधानसभा से पारित कराई गई सीएनटी-एसपीटी में संशोधन से संबंधित विधेयक लौटाया। इतना ही नहीं उन्होंने सरकार में जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) के गठन संबंधित फाइल लौटाई। इससे साबित होता है कि वे केवल रबड़ स्टांप बनकर नहीं रहेंगी और किसी भी फाइल पर आंख मूंदकर अपनी मंजूरी नहीं देंगी। अब वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बन गईं हैं।राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा कि भारत में गरीब भी सपना देख सकता है और उनके लिए देशवासियों की हित सर्वोपरि होगी।






