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देखने में साधारण कद-काठी, लेकिन गांधी की विरासत उनकी थाती है। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी का कुर्ता और धोती है और आंखों पर मोटा चश्मा है। इस शख्स ने जब 5 अप्रैल 2011 लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पारित करने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे तो देखते ही देखते यह देश का चर्चित नाम बन गया।
हम जिस शख्स की बात कर रहे हैं, वह है सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे। उस समय पूरे देश में एक ऐसा माहौल बन गया था कि लोग कहने लगे थे कि अन्ना नहीं आंधी है, आधुनिक भारत का गांधी है। यही वो दौर था जब अन्ना का नाम न केवल लोगों के जुबान पर चढ़ गया बल्कि घर घर तक पहुंच गया। आंदोलन की आग पूरे देश में फैलने लगी। 8 अप्रैल 2011 को सरकार ने आंदोलन की मांगों को स्वीकार कर लिया। 9 अप्रैल 2011 की सुबह उन्होंने अपनी 98 घंटे की भूख हड़ताल समाप्त कर दी।
वह फिलहाल अपने पैतृक गांव महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धी में रहते है। उन्होंने एक बार फिर आंदोलन करने की हुंकार भरी है। लोकायुक्त की क्रियान्वयन की मांग को लेकर शुरू होने वाला ताजा आंदोलन उनके ही नेतृत्व में चलेगा।
The government’s money is the people’s money. Make effective policies for the benefit of the people.
किशन बाबूराव हजारे का जन्म 15 जून 1937 को अहमदनगर के पास भिंगर में हुआ था। वह बाबूराव हजारे और लक्ष्मीबाई के बड़े पुत्र हैं। उनकी दो बहनें और चार भाई हैं। अन्ना ने विवाह नहीं किया और आजीवन अविवाहित रहे।उनके पिता ने आयुर्वेद आश्रम फार्मेसी में एक अकुशल मजदूर के रूप में कार्य किया करते थे। दादा की मौत और आर्थिक तंगी को देखते हुए उनका पूरा परिवार रालेगण सिद्धि के अपने पैतृक गांव चला गया। वहां उनके पास थोड़ी सी कृषि भूमि थी। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की।
परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वे दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचने वाले की दुकान में 40 रुपये के वेतन पर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया। वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे। 12 नवम्बर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहाँ तैनात सारे सैनिक मारे गए। इस घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में 13 और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई।1975 में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के 15 वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे वापस अपने पैतृक गांव रालेगन सिद्धि आ गए और इसी गाँव को उन्होंने अपनी सामाजिक कर्मस्थली बनाकर समाज सेवा में जुट गए।
अन्ना ने सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार से शराबबंदी की कानून लागू करने की मांग उठाई। सरकार ने भी उनकी मांग का समर्थन करते हुए 2009 में बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट 1949 में संशोधन किया। इसके बाद गांव में तंबाकू, सिगरेट और बीड़ी की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गांव के युवाओं ने इन नशीले पदार्थों को आग के हवाले कर दिया। पूरा गांव नशा मुक्त हो गया। 1980 में उन्होंने सूखा को देखते हुए मंदिर में अनाज बैंक की शुरुआत की। ग्रामीणों को उन्होंने वाटरशेड तटबंध बनाने के लिए राजी किया। वहां गन्ना के बजाय दलहन, तिलहन का उत्पादन होने लगा। उन्होंने रालेगण सिद्धि के युवाओं के साथ मिलकर साक्षरता दर और शिक्षा के स्तर को बढ़ाने का काम किया। 1976 में उन्होंने एक प्राथमिक स्कूल और 1979 में एक हाई स्कूल शुरू किया।
Those who live for themselves die, those who die for the society live.
1991 में अन्ना ने भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन की शुरुआत की। 2003 में कांग्रेस- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार के चार मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। 2000 के दशक की शुरुआत में अन्ना ने महाराष्ट्र राज्य में एक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने राज्य सरकार को एक संशोधित महाराष्ट्र सूचना का अधिकार अधिनियम बनाने के लिए मजबूर किया। 2007 में महाराष्ट्र ने अनाज आधारित शराब नीति शुरू की तो उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी। 2017 में अन्ना ने पूरे देश का भ्रमण किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ व्यापक जन समर्थन हासिल किया। इसी जनसमर्थन के बदौलत उन्होंने 2018 में दिल्ली के रामलीला मैदान में आंदोलन छेड़ा और सरकार को झुकने को मजबूर किया। हालांकि लोकपाल को लेकर कई सारी कवायद की गई, लेकिन जमीनी हकीकत पर वह अब भी क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। उनके सामाजिक कार्यों के स्वीकृति देते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें पदमश्री और पद्मभूषण प्रदान किया है। इसके अलावा भी उन्हें कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। अन्ना पर पहली बायोपिक का निर्माण 2016 में किया गया। जिसका निर्देशन मराठी अभिनेता से निर्देशक बने शशांक उदपुरकर ने किया। अन्ना के किरदार को भी उन्होंने जीवंत किया। अन्ना के जीवन एवं आंदोलन पर दो अलग-अलग मराठी फिल्म बन चुकी है।