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दुनिया की आधी आबादी अब भी विभिन्न समस्याओं से जूझ रही है। महिलाओं की दशा को सुधारने के लिए वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं और इसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली है। सरकार भी महिला सशक्तिकरण को लेकर विभिन्न कदम उठा रही है। सरकार और निजी पहल की तमाम कोशिशों के बावजूद आधी आबादी की स्थिति में उस पैमाने पर सुधार नहीं दिख रहा है, जितनी दिखनी चाहिए थी।
देश की महिलाओं की स्थिति, गरीब और मजदूर किसानों की स्थिति सुधारने के लिए समाज सेविका अरुणा राॅय ने अपने जीवन में कई कार्य किए हैं किए। वह एक राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में भी कार्यरत रह चुकी हैं। उनके विभिन्न क्षेत्र में किए गए कार्य को देखते हुए कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है।
उन्होंने सूचना का अधिकार को लागू कराने में विशेष योगदान दिया। गौरतलब है कि उनका जन्म 26 जून 1946 को तमिलनाडु के चेन्नई में हुआ था। उन दिनों यह ब्रिटिश सरकार के मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। उनके पिता ईडी जयराम और माता हेमा तमिल ब्राह्मण परिवार से थे। वह जिस परिवार में पली बढ़ी थीं, उसकी कई पीढ़ियां लोक सेवा से जुड़ी थीं।
उन्होंने पारंपरिक परिवार की रूढ़िवादी मान्यताओं को खारिज किया। वह बचपन से ही मेहनती और मेधावी रहीं। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला लिया। 1968 में उन्होंने आईएएस की परीक्षा उत्तीर्ण की। सरकारी अफसर बनने के बाद उन्हें देश के कई गांवों को देखने का मौका मिला। धीरे-धीरे वहां कि बदहाली देख उन्हें एहसास होने लगा कि वह देश के भ्रष्ट तंत्र के बीच रहकर कोई बदलाव नहीं ला पाएंगी। इसलिए 7 साल की नौकरी के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने आईएएस की नौकरी छोड़ने के बाद राजस्थान में सामाजिक कार्य एवं शोध केंद्र में काम करना शुरू किया। इस संस्था की स्थापना उनके पति संजित बंकर ने की थी। 1983 में पति से अलगाव होने तक वे इसी संस्था के साथ जुड़ी रही गरीबों के लिए काम किया। इसके बाद उन्होंने बाद उन्होंने राजस्थान के ही एक गांव में अपने साथियों के साथ मिलकर गेर सरकारी संगठन मजदूर किसान शक्ति की स्थापना की। 1992 में राजस्थान की भंवरी देवी बलात्कार मामले को लेकर उन्होंने बीस महिलाओं और मानव अधिकार संगठनों के समूह के साथ मिलकर जयपुर में बड़ा प्रदर्शन किया।
वह गांव वालों के साथ रहकर ही उनकी समस्याओं के लिए काम करती थीं और लोगों को सवाल पूछने के लिए प्रेरित करती थीं। एक रैली के दौरान उन्होंने राज्य सरकार को बाध्य किया कि वह विकास पूंजी का हिसाब जनता के सामने रखें। उनकी पहल से राजस्थान समेत तीन अन्य राज्यों में सूचना का अधिकार कानून पारित हुआ। उन्होंने मजदूरों और किसानों को जागरूक करके उन्हें सचेत बनाया। उन्हें सूचना के महत्त्व की जानकारी दी तथा उदाहरण देकर उन्हें यह एहसास दिलाया कि सूचना उनका अधिकार है और यही उनके सुधार की कुंजी भी है।
उनकी इसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मैग्सेसे पुरस्कार मिला था। उस पुरस्कार राशि को एक ट्रस्ट में रख कर उसका उपयोग भी लोकतान्त्रिक संघर्षों के लिए सुरक्षित रख दिया। इसके अलावा उन्हें मेवाड़ सेवाश्री समेत कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है।