नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने देश में मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। शीर्ष अदालत का कहना था कि मनमाने तरीके से एवं बिना सोचे समझे होने वाली गिरफ्तारियां औपनिवेशिक मानसिकता को प्रदर्शित करती हैं। इस कदम से ऐसा लगता है कि हम पुलिस स्टेट में रहते हैं। न्यायाधीश संजय किशन कौल और एमएम सुंद्रेश की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति के मामले में फैसला देते हुए यह बात कही है। उन्होंने सरकार से जमानत देने की प्रक्रिया को और बेहतर बनाने के लिए एक नए कानून बनाने की भी अपील की। उनका कहना था कि गिरफ्तारी पर नया कानून बनाना समय की मांग है। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी की नियमित जमानत अर्जी पर सामान्य रूप से दो सप्ताह के भीतर और अग्रिम जमानत अर्जी पर निर्णय छह सप्ताह के भीतर फैसला होना। हम राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देते हैं कि वे लोगों को गिरफ्तार करने से पहले सीआरपीसी की धारा 41 एवं 41ए का पालन कराना सुनिश्चित करें। जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या पर अदालत ने कहा कि ऐसे कैदियों में गरीब एवं अनपढ़ और महिलाएं हैं। ऐसे में उनकी जमानत के लिए एक सरल कानून बने। जमानत नियम और जेल अपवाद के सिद्धांत अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का आधार है। पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है कि वह गिरफ्तारी की वजहों को लिखे। अदालत ने अफसोस जताया कि जांच एजेंसियां उसके पहले के आदेशों का पालन नहीं कर रही हैं।
सोनोवाल तीन दिवसीय सिंगापुर यात्रा पर
नई दिल्ली : केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्वानंद सोनोवाल सिंगापुर समुद्री सप्ताह में भाग लेने के लिए सिंगापुर...
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