असम, गुवाहाटी : असम में अपराधियों के खिलाफ जारी एनकाउंटर को लेकर उठ रहे विभिन्न सवालों के बीच राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने अपना मुंह खोला है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे जब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान है, तब तक अपराधियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति बरकरार रखेंगे।
उनका कहना था कि एनकाउंटर को लेकर जो भी उनकी सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें स्पष्ट करने की जरूरत है कि आखिर वह चाहते क्या है। अगर उन्हें बलात्कारियों या ड्रग पेडलरो से हमदर्दी है या फिर वे चाहते हैं कि हमारा समाज अपराध मुक्त हो। अगर उन्हें लगता है कि अपराधियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। तो क्या उनका अभिनंदन होना चाहिए। क्या हम समाज को उनके हवाले कर देना चाहिए। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि इस तरह के सवाल उन से नहीं पूछा जाना चाहिए।
जिन्हें लगता है कि सरकार गलत काम कर रही है तो वह दूसरे फोरम में इसकी शिकायत कर सकते हैं। उन्होंने दोहराते हुए कहा कि उनके मुख्यमंत्री रहते हुए अपराधियों के खिलाफ कठोर नीति बरकरार रहेगी और वे इससे पीछे नहीं हटेंगे। गौरतलब है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने असम पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ का आरोप लगाने वाली एक शिकायत पर राज्य के पुलिस महानिदेशक से चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) देने के लिये कहा। आयोग ने डीजीपी को भेजे गए एक ईमेल में यह भी पूछा कि क्या उन्हें इसी मुद्दे पर राज्य मानवाधिकार आयोग से कोई नोटिस, आदेश आदि प्राप्त हुआ है। यदि हां, तो उसकी एक प्रति भी चार सप्ताह के भीतर उपलब्ध कराएं।
एनएचआरसी के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें मई में हिमंत सरकार के नेतृत्व वाली भाजपा की नयी सरकार के गठन के बाद से राज्य में कथित फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की संख्या में वृद्धि का आरोप लगाया गया था। यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि असम के राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दिव्य ज्योति सैकिया ने एनकाउंटर को लेकर सवाल उठाया था कि एक राज्य के मुख्यमंत्री कैसे खुले मंच पर पुलिस को अभियुक्तों के पैर पर गोली मारने की बात कह सकते हैं।
उनका कहना था कि पिछले 4 महीने में पुलिस के इतने सख्त होने के बावजूद भी गांव-गांव में ड्रग्स का प्रचलन जारी है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार केवल दिखावा कर रही है। ऐसा भी संदेह हो रहा है कि एक तरफ से युवा पीढ़ी को खत्म करने की साजिश रची जा रही है, ताकि वह भविष्य में समाज एवं अपने अधिकारों को लेकर आवाज न उठा सके। न्यायालय एवं अदालत के बजाएं पुलिस कैसे किसी को अपराधी ठहरा कर गोली मार सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इसका अर्थ यह नहीं कि वह अपराधी अपराधियों का समर्थन करते हैं।
लेकिन यह एनकाउंटर सरासर मानवाधिकार का उल्लंघन कहा जा सकता है। उनका कहना था कि इसका मतलब यह भी है कि पुलिस दुर्बल है। वह सामान्य अभियुक्त को भी नियंत्रित नहीं कर पाती है। दूसरी तरफ उन्हें यह भी लगता है कि सिंडीकेट अब भी चल रहा है। इसे बंद कर नया सिंडिकेट शुरू करने की कोशिश की जा रही है। इन एनकाउंटर से लगने लगा है कि पुलिस चाहे तो किसी को भी अपराधी बना कर गोली मार सकती है। इसीलिए आयोग को इस पर सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
अगर ऐसा नहीं होता तो आने वाले समय में इसके परिणाम भयानक हो सकते हैं। अगर सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो आगे जाकर बहुत बुरा परिणाम हो सकता है। मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री की बयान से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वे एक तरह से न्याय व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं।