असम, गुवाहाटी : असम कांग्रेस ने कहा कि सरकार अगर असम विधानसभा में बिना किसी चर्चा के पड़ोसी राज्य मेघालय के साथ अंतर्राज्यीय सीमा विवाद के छह क्षेत्रों में समाधान की दिशा में आगे बढ़ती है तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है। आज एक ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रदेशाध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार के साथ-साथ पिछली सरकारों ने भी कई मौकों पर यह स्वीकार किया था कि पड़ोसी राज्यों ने असम की भूमि पर कब्जा किया है।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार अब जल्दी में और बिना विधानसभा में विस्तृत चर्चा किए और जातीय के संगठनों को विश्वास में लिए बिना इस तरह की कार्रवाई करती है, तो हमें काफी नुकसान होगा। हमारा अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम जैसे राज्यों के साथ सीमा विवाद हैं। अगर आने वाले दिनों में उन विवादों को भी हल करने के लिए इसी तरह नीति अपनाते हैं तो हमारी सीमाएं सिकुड़ जाएंगी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि हम इस तरह के परिणाम को कभी स्वीकार नहीं करेगी। उनका कहना है कि संविधान का अनुच्छेद 131 हमें अंतर-राज्यीय सीमा विवादों को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अवसर देता है। केंद्र सरकार द्वारा गठित अंतर-राज्य सीमा आयोग ने असम-मेघालय सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 1983 और 1992 के बीच कदम उठाए थे, लेकिन मेघालय ने उस प्रयास में कभी सहयोग नहीं किया।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी पार्टी के विधायक दल की बैठक 23 जनवरी को होगी। इस बैठक में हमारे सभी सांसद भी उपस्थित रहेंगे। हम बैठक के दौरान इस मुद्दे पर अपनी पार्टी की रणनीति और भविष्य की कार्रवाई के बारे में चर्चा करेंगे। इसके बाद हम इस मुद्दे को लेकर असम साहित्य सभा और अन्य जातीय संगठनों को एक पत्र भेजेंगे जिसमें असम-मेघालय सीमा विवाद पर पार्टी की स्थिति स्पष्ट की जाएगी।
हम विवादित जमीन मेघालय को सौंपने की साजिश का विरोध करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि सरकार विधानसभा में कई बार स्वीकार कर चुकी है कि पड़ोसी राज्यों ने हमारी भूमि हरपी है। ऐसे में सरकार अगर बिना चर्चा के आगे कि कदम उठाती है तू मजबूरन हमें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। मेघालय के साथ अगर हम समझाता करते हैं तो दूसरे पड़ोसी राज्य में यही नीति अपनाने को मजबूर करेगी, जो हमें स्वीकार्य नहीं।