असम, गुवाहाटी : असम के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) जीपी सिंह ने तत्काल कार्रवाई करते हुए एक पुलिस अधिकारी द्वारा डिलीवरी एजेंट के साथ मारपीट करने का वीडियो सामने आने के बाद पानबाजार पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी (ओसी) इंस्पेक्टर भार्गव बोरबोरा को निलंबित करने की घोषणा की। मामले की विभागीय जांच के भी आदेश दिये गये हैं।डीजीपी सिंह ने कहा इंस्पेक्टर भार्गव बोरबोरा का व्यवहार अस्वीकार्य है। उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जा रहा है। गुवाहाटी पुलिस आयुक्त को तुरंत एक अन्य अधिकारी को उनकी जगह तैनात करने को कहा गया है। गुवाहाटी के फैंसी बाजार में पुराने जेल रोड ट्रैफिक पॉइंट के पास शाम करीब साढ़े छह बजे हुई यह घटना एक दर्शक के मोबाइल फोन में कैद हो गई। देखते ही देखते यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। बताया जाता है कि सोनितपुर जिले के रहने वाले ज्ञानदीप हजारिका नामक युवक अपना पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए फूड डिलीवरी का कार्य करता है। वह फिलहाल कॉटन विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रहा है और यह उसका आखिरी वर्ष है। घटना के बारे में उसका कहना है कि उस भले ही गलती हुई हो लेकिन पुलिस का उसे पर हाथ उठाना सही नहीं है। वही इस घटना पर डिलीवरी एजेंट की मां बेबी हजारिका ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है और पुलिस कर्मियों के कृत्य की निंदा की है।उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी ने जो किया वह गलत था। ऐसी ताकत का सहारा लेने की कोई जरूरत नहीं थी। यदि कोई समस्या थी, तो वह इसके बदले जुर्माना जारी कर सकता था। बेबी ने पेशेवर आचरण बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। हम भी पुलिस विभाग में काम करते हैं और अच्छा व्यवहार सभी अधिकारियों की प्राथमिकता होनी चाहिए। इस संदर्भ में सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति ने पुलिस आयुक्त को संबोधित करते हुए लिखा कि पुलिस अधिकारी के मानसिक स्वास्थ्य की जांच करना जरूरी है। इतना गुस्सा क्यों, इतना हिंसक क्यों? यदि एक सामान्य अपराध को सार्वजनिक रूप से इतनी क्रूरता प्रदर्शित की जाए तो क्या उसकी हिरासत में अकेला व्यक्ति सुरक्षित रहेगा? यह निराशाजनक है कि पुलिस अपनी ज़िम्मेदारियाँ, अधिकार और कर्तव्य भूल जाती है। आपके अच्छे कामों की जगह ये बुरे काम पूरे विभाग को शर्मसार कर देते हैं। इसके अलावा इस घटना पर असम के राष्ट्रीय स्तर के मानव अधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दिव्यज्योति सैकिया ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि पुलिस का आचरण सही नहीं था। ऐसी घटनाएं रोजाना होती है लेकिन वह संज्ञान में नहीं आता। उनका कहना था कि अगर सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल नहीं होता तो शायद यह भी एक आम घटना बनकर रह जाती। वे कहते हैं कि किसी निर्दोष पर अत्याचार करना पुलिस का काम नहीं है। उनके हाथों में कानून व्यवस्था को बनाए रखने की भारी जिम्मेदारी होती है। ऐसे में सार्वजनिक जीवन में होने के कारण उन्हें अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए। उनका कहना था कि यह सरासर मानव अधिकार का उल्लंघन है और इस तरह की घटना की पुर्नवृत्ति रोकने के लिए पुलिस को भी अपने आचरण में सुधार करना चाहिए। पुलिस के हाथ में शक्ति होने का मतलब यह नहीं की वह गुंडे जैसे काम करें। इस घटना ने पुलिस और गुंडे के बीच के फैसले को ही कम कर दिया है।
असम में है 14 अंतर्राष्ट्रीय सीमा चौकियाँ
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