असम, गुवाहाटी: असम कैबिनेट ने आज नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) 1955 के तहत किसी भी गोरखा नागरिक पर मुकदमा नहीं चलाने और विदेशी न्यायाधिकरणों से गोरखाओं से संबंधित सभी लंबित अभियोजन को वापस लेने का फैसला किया। सरकार के इस कदम से बड़ी राहत मिलेगी।
राज्य में हजारों वर्षों से रहने वाले रहने वाले हजारों गोरखाओं समुदाय को आज भी अपनी पहचान साबित करने के लिए जूझना पड़ रहा है। समुदाय के लोगों को अपनी राष्ट्रीयता साबित करने में विफल रहने पर राष्ट्रीय नागरिक पंजी एनआरसी के अद्यतन प्रक्रिया से बाहर रखा गया था। इससे पूर्व पिछले महीने ही राज्य सरकार ने सदिया आदिवासी बेल्ट में गोरखाओं को संरक्षित वर्ग के रूप में मान्यता दी थी।
मालूम हो कि राज्य के अधिकांश गोरखा समुदाय के लोग डी वोटर कहलाते हैं। 1997 में मतदाता सूची के गहन संशोधन के दौरान चुनाव आयोग ने आदेश दिया था कि उन मतदाताओं के नाम के आगे डी अक्षर लगा दिया जाए लगा दिया जाए जो अपनी नागरिकता साबित करने में विफल रहे हैं। उनके मामले राज्य में विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) को भेजे गए थे। डी मतदाता के रूप में घोषित व्यक्ति को मतदाता का फोटो पहचान पत्र नहीं दिया जाता है और उसे वोट डालने से रोक दिया जाता है।
माना जाता है कि अनुमानित 23 हजार गोरखा अभी भी राज्य में डी वोटर हैं। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब समुदाय पर ना तो कोई नया मामला दर्द होगा और पहले के मामलों को वापस ले लिया जाएगा। इसके अलावा कैबिनेट की बैठक में और कई महत्वपूर्ण फैसले भी लिए गए।