नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अदालतें जमानत अर्जी पर फैसला लेते वक्त मामले के किसी भी पहलू को अनदेखा नहीं कर सकतीं। जैसे अभियुक्त पर लगाए गए आरोप और दोषी ठहराये जाने की स्थिति में सजा की गंभीरता आदि। इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के 2019 में दिए दो फैसलों को दरकिनार कर दिया। उच्च न्यायालय ने दो आरोपियों को हत्या के मामले में जमानत दी थी।
न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना की पीठ एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपने पति के हत्यारों को दी गई जमानत को चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जमानत देते वक्त एक भी पहलू पर गौर नहीं किया। पीठ ने उच्चतम न्यायालय के कुछ समय पहले जारी आदेश का जिक्र करते हुए कहा जमानत देते समय अदालत के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह विस्तृत कारण बताए, खासकर तब जब मामला आरोप के प्रारंभिक चरण में हो और जिस पर आरोप नहीं लगाया गया हो या फिर आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया हो।
लेकिन जमानत पर फैसला करते हुए महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे लगाए गए आरोप, दोषी ठहराये जाने की स्थिति में सजा की गंभीरता आदि को अनदेखा नहीं करना चाहिए। उक्त मामले में उच्च न्यायालय ने ऐसी ही गलती की है। इसलिए फैसले को खारिज किया जाता है।