नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी मृत कर्मचारी की दूसरी पत्नी का बेटा होने के आधार पर उसे अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसा करना आवेदक के मौलिक अधिकारों का हनन होगा और उसके परिवार की गरिमा के खिलाफ होगा।
न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायाधीश एस रवींद्र भट और न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि इस तरह की नियुक्ति से इनकार करने की नीति भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने कहा कि नीति, मृत कर्मचारी के बच्चों को वैध व नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके और केवल वैध वंशज के अधिकार को मान्यता देकर किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति के नियम संविधान के अनुच्छेद-14 के जनादेश का उल्लंघन नहीं कर सकते हैं। जब हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-16 में एक विवाह से पैदा हुए बच्चे को मान्यता दी गई है, जबकि पहली शादी वैध होती है, ऐसे में यदि नीति या नियम ऐसे बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ लेने से रोकता है तो यह अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होगा।
अदालत ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ मुकेश कुमार द्वारा दायर दायर एक अपील की स्वीकार किया, जिसमें मृतक जगदीश हरिजन की दूसरी पत्नी के बेटे होने के कारण रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति के उनके दावे को खारिज कर दिया था।