नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि कोई पुरुष और महिला लंबे समय तक साथ रहते हैं तो कानून के अनुसार इसे विवाह जैसा ही माना जायेगा और उनके बेटे को पैतृक संपत्तियों में हिस्सेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने संपत्ति बंटवारा कर आधा हिस्सा मांग रहे याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार करते हुए केरल उच्च न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अगर एक पुरुष और एक महिला पति और पत्नी के रूप में लंबे समय तक एक साथ रहते हैं, तो इसे विवाह जैसा ही माना जायेगा। इस तरह का अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है।
अदालत ने केरल उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के सबूत के अभाव में एक साथ रहने वाले पुरुष और महिला का नाजायज बेटा पैतृक संपत्तियों में हिस्सा पाने का हकदार नहीं है।