नई दिल्ली : भारत की अगुवाई में शुरू हो रहा दिल्ली रीजनल सिक्योरिटी डॉयलॉग मील का पत्थर साबित हो सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सचिवालय के सूत्र बताते हैं कि एनएसए अजीत डोभाल की अगुवाई में बुलाए गए सम्मेलन की जड़ें काफी गहरी हैं। अफगानिस्तान के मामले में भारत का यह कोई पहला और अंतिम प्रयास नहीं है। बल्कि अब एक सिलसिले की शुरुआत हो रही है और एशिया तथा मध्य एशिया में भारत के हितों को साधने में इसकी बड़ी भूमिका होगी।
विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि इसके जरिए भारत ने पाकिस्तान के नापाक इरादों को रोकने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। पूर्व विदेश सचिव शशांक भी कहते हैं कि फिलहाल इस डॉयलॉग के बहाने भारत ने अपनी अहम भूमिका का एहसास दे दिया है। इससे दुनिया के देशों में अफगानिस्तान में शांति के प्रयासों को लेकर भारत की साफ-सुथरी मंशा का संकेत जाएगा।
पाकिस्तान की मंशा है कि अफगानिस्तान के मामले में भारत दूर रहे। वहां निर्माण, शांति की स्थापना, अंतरिम सरकार के गठन जैसी संभावनाओं में पाकिस्तान का प्रयास भारतीय हितों के रास्ते में रोड़ा अटकाने वाला है। पड़ोसी देश चीन ने अफगानिस्तान में अपने हितों का रोड मैप पाकिस्तान के सहयोग से तैयार किया है।
इसलिए चीन ने भी पाकिस्तान की सलाह को मानते हुए दिल्ली रीजनल सिक्योरिटी डॉयलॉग में शामिल होने में अपनी आनाकानी दिखाई है। एशिया में चीन के बाद दूसरे नंबर का सबसे प्रभावशाली देश भारत ही है। ऐसे में पाकिस्तान और चीन एशिया में भारत की लगातार मजबूत होती हुई स्थिति को बहुत हितकर नहीं मानते। जबकि भारत, चीन और रूस ब्रिक्स फोरम के सदस्य हैं। तीनों देशों ने आरआईसी (रूस-चीन-भारत) का फोरम बनाया है।
एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) में भारत, रूस, चीन के अलावा पाकिस्तान भी सदस्य है। हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में भारत ने लगातार शिरकत की है, लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान में पैदा हुई सुरक्षा चिंताओं पर भारत के निमंत्रण को दोनों देशों ने ठुकरा दिया।
फिर भी भारत ने पहल की है और रूस, ईरान, ताजकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दिल्ली डॉयलॉग में शामिल होने के लिए भारत पहुंच रहे हैं। इनमें से ईरान, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान की सीमाएं सीधे तौर पर अफगान से जुड़ी हैं।