नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कठोर उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एवं असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए किसी व्यक्ति के बार-बार अपराधी होने की आवश्यकता नहीं है। गिरोह का हिस्सा होने पर मामले के आरोपी पर भी विशेष कानून के तहत मामला चलाया जा सकता है। न्यायाधीश एमआर शाह और न्यायाधीश बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस विशेष कानून के तहत अभियोजन को चुनौती देने वाली एक महिला श्रद्धा गुप्ता की याचिका को खारिज कर दिया।
महिला का कहना था कि उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है और उसे पहली बार किसी आपराधिक मामले में नामजद किया गया है, ऐसे में उसपर गैंगस्टर एक्ट नहीं लग सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) और गुजरात आतंकवाद एवं संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के विपरीत, गैंगस्टर अधिनियम के तहत ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जिसमें कहा गया है कि गैंगस्टर एक्ट के तहत किसी आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए एक से अधिक प्राथमिक या आरोप पत्र होनी चाहिए। कानून की स्थापित स्थिति के अनुसार क़ानून के प्रावधानों को पढ़ा और माना जाना चाहिए।
गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधानों से साफ है कि गिरोह का सदस्य होने पर और गैंगस्टर्स में उल्लिखित गतिविधियों में लिप्त होने पर एक अपराध के लिए भी इस विशेष अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है।