नई दिल्ली : देश के मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्याओं के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह सभी मामले रैगिंग से जुड़े नहीं हैं, लेकिन इनमें से काफी घटनाओं के पीछे कॉलेज के सीनियर छात्रों द्वारा जूनियर को परेशान करना मुख्य कारण सामने आ रहा है। यह जानकारी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) की एंटी रैगिंग कमेटी की पहली बैठक में सामने आई है। इसके आधार पर आयोग ने देश भर के मेडिकल कॉलेजों को बीते पांच साल का ब्योरा देने के आदेश जारी किए हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने देश भर के मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग को रोकने के लिए कमेटी का गठन किया है। डॉ. अरुण वी वानिकर की अध्यक्षता में कमेटी की पहली बैठक बीते सप्ताह हुई थी। इस दौरान अलग अलग मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्याओं की घटनाओं को लेकर चर्चा की गई। कमेटी के औजेंदर सिंह ने बताया, बैठक के बाद कमेटी ने आयोग को अपनी सिफारिशें सौपीं हैं, जिसके बाद सभी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और निदेशक को आदेश जारी किए गए। आयोग ने बीते पांच साल के दौरान उन छात्रों की जानकारी मांगी है, जिन्होंने आत्महत्या की है। इसमें यूजी और पीजी दोनों तरह के छात्र शामिल हैं। आयोग ने कहा है कि दैनिक और साप्ताहिक तौर पर छात्रों की कार्य अवधि मेडिकल कॉलेज में क्या रहती है? दरअसल देश के मेडिकल कॉलेजों में रेजिडेंट डॉक्टर अक्सर क्षमता से अधिक कार्य करने का दावा करते हैं, जिसकी वजह से वे मानसिक तौर पर भी परेशान रहते हैं।
एनएमसी ने मांगा पांच साल का ब्योरा
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By The Radar
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