पंजाब, चंडीगढ़ : पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में संबंध में सहमति की दलील को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि नाबालिग की सहमति को वैध नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ जिला अदालत द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए सजा को बरकरार रखा है। साथ ही सजा बढ़ाने की मांग को लेकर यूटी प्रशासन की ओर से दाखिल अपील को भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।याचिका दाखिल करते हुए शामली निवासी मोनू ने चंडीगढ़ जिला अदालत द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा के आदेश को चुनौती दी थी। याची ने कहा था कि जिसे 14 साल की बच्ची बताया जा रहा है वह घटना के समय बालिग थी। उसे पता था वह क्या कर रही है। ऐसे में पॉक्सो एक्ट में सजा सुनाना और दुष्कर्म की सजा सुनाना गलत है। यूटी प्रशासन ने कहा कि घटना के समय बच्ची 14 साल की थी और स्कूल से जुड़ा रिकॉर्ड पेश किया। साथ ही यूटी प्रशासन ने याची को सुनाई गई सजा को कम बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग की। हाईकोर्ट ने दोनों ही याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने दोषी की अपील खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता ने कोर्ट में दिए बयान में साफ कहा है कि उससे दुष्कर्म किया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि सहमति से हुआ यह मान भी लिया जाए तो पीड़िता नाबालिग है और उसकी सहमति वैध नहीं है। ऐसे में हाईकोर्ट ने जिला अदालत द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील को खारिज कर दिया।
असम में है 14 अंतर्राष्ट्रीय सीमा चौकियाँ
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