नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, असम सरकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि क्या असम की अंतिम पूरक राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) सूची में आए लोगों का आधार कार्ड बनाया जा सकता है या नहीं? अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की राज्यसभा सांसद सुष्मिता देव की याचिका पर कोर्ट ने तीनों पक्षों को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि अदालत एनआरसी की अंतिम पूरक सूची में शामिल व्यक्तियों को आधार कार्ड जारी करने का आदेश जारी करे। न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायाधीश एस रवींद्र भट्ट और न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने इस मामले पर नोटिस जारी किया है।
देव ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि लगभग 21 लाख लोग, जिनके नाम 31 अगस्त 2019 की अंतिम पूरक सूची के माध्यम से एनआरसी में शामिल किए गए थे, उन्हें इस तथ्य के कारण आधार नंबर प्रदान नहीं किया जा रहा है कि केंद्र ने एनआरसी बायोमेट्रिक डेटा को रोक लिया है और दावों और आपत्तियों के निपटान के उद्देश्य / तौर-तरीकों का हवाला देते हुए केंद्र ने इसे होल्ड किया है। नतीजन ये लोग आधार के माध्यम से उपलब्ध लाभों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि आधार नंबर प्राप्त करने में सक्षम नहीं होने से लगभग 20 लाख लोग संकट में पड़ गए हैं, क्योंकि वे राज्य द्वारा स्वीकृत योजनाओं, सब्सिडी और लाभों का उपयोग नहीं उठा पा रहे हैं।
इसके लिए आधार व्यवस्था के तहत अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता होती है। याचिका में कहा गया है कि आधार न होने की वजह से शिक्षा की पहुंच, नौकरियों के लिए आवेदन, पैन कार्ड के लिए आवेदन, राशन कार्ड, बैंक खाते खोलने आदि में लोगों को बड़ा नुकसान हो रहा है और इसलिए ऐसे लोगों की आजीविका का अधिकार, भोजन का अधिकार या स्वतंत्रता, चाहे वह आर्थिक हो या राजनीतिक, आत्मनिर्णय और स्वायत्तता सभी प्रभावित हो रही है।
याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार ऐसे व्यक्ति को आधार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निर्धारित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि राज्य की कार्रवाई उन लोगों के साथ एक वर्ग के भीतर एक वर्ग बनाती हैं जिनके नाम पूरक सूची में दर्ज किए गए हैं, जो पहली एनआरसी सूची में पंजीकृत व्यक्ति से अलग हैं।