राजस्थान, जयपुर : प्रदेश भाजपा के अंदर खींचतान लगातार बढ़ रहा है। नेताओं की आपसी कलह और खेमेबंदी मिटाने की कोशिश जारी है। इसके बावजूद भी गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह लगातार नेताओं में समन्वय कायम कराने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन नेताओं पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ है। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से करीब पौने दो साल पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर असंतोष लगातार बढ़ती जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री पद का स्वभाविक चेहरा मान रहे हैं। पिछले दो माह में वसुंधरा राजे ने धार्मिक यात्रा के बहाने एक दर्जन जिलों का दौरा कर आम मतदाताओं के साथ कार्यकर्ताओं का मन टटोला है। धार्मिक यात्रा में भीड़ जुटाकर उन्होंने अपनी ताकत का अहसास भी करवाया है। अब प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया जिलों में जाकर खुद को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में दिखाने की कवायद तेज कर दी है।
एक महीने में में पूनिया दस जिलों में गये और वहां उनके समर्थकों ने उन्हें भावी मुख्यमंत्री बताया। पूनिया और उनके समर्थकों की रणनीति है कि संगठन के पदाधिकारियों के माध्यम से आलाकमान तक राज्य में जाट मुख्यमंत्री की बात को पहुंचाई जाए। वे दो दिन से जाट जैसलमेर, बाड़मेर जिलों के दौरे पर हैं। संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिहाज से वे मंडल से लेकर जिला स्तर तक पदाधिकारियों की नई टीम बनाई है।
इनमें वसुंधरा राजे, सांसद ओमप्रकाश माथुर, किरोड़ी लाल मीणा और अन्य वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों को कोई पद नहीं दिया गया। वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के साथ ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और सांसद दीया कुमारी भी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। दीया कुमारी के लिए चंद्रराज सिंघवी लाबिंग में जुटे हैं। दीया कुमारी राजपूत नेताओं से संपर्क साध रही हैं।