राजस्थान, जोधपुर : राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर को उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुरूप आरक्षण देने का निर्देश दिया है। न्यायाधीश मदन गोपाल व्यास और न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव की दो सदस्यीय खंडपीठ ने राजस्थान सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया कि नौकरी में आरक्षण देना या कितना देना राज्य का विशेषाधिकार है।
न्यायालय की जोधपुर पीठ ने सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में कोटा तय करने का निर्देश दिया। साथ ही इससे संबंधित प्रक्रियाओं को चार माह में पूरा करने को कहा है। न्यायालय ने ट्रांसजेंडरों की याचिका पर राज्य सरकार को यह निर्देश दिया है। ट्रांसजेंडरों को कहना है कि वह पुलिस सब इंस्पेक्टर बनना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने भर्ती परीक्षा में भी हिस्सा लिया था।
गौरतलब है कि कर्नाटक देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने सार्वजनिक नौकरियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आरक्षण लागू किया है। राज्य सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस सूरज गोविंदराज की खंडपीठ को सूचित किया कि उसने ट्रांसजेंडरों के लिए 1 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए कर्नाटक सिविल सेवा (सामान्य भर्ती) नियम, 1977 में संशोधन किया है।
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2014 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी। अदालत ने उन्हे तीसरे वर्ग के रूप में ट्रांसजेंडर को मान्यता दी है। किन्नरों को ऐसा दर्जा देने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है।
उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर देश के नागरिक हैं और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका समान अधिकार है।