पश्चिम बंगाल, कोलकाता : उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई त्रासदी, जहां नारायण साकार हरि उर्फ स्वयंभू ‘भोले बाबा’ द्वारा आयोजित सत्संग के दौरान भगदड़ में 120 से अधिक लोगों की जान चली गई। वहीं, अनेक लोग गभीर रूप से घायल अवस्था में अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती हैं। इस घटना पर भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति (Science and rationalists’ association of india) संवेदना व दुख जतायी है।युक्तिवादी समिति के उपाध्यक्ष सन्तोष शर्मा ने 6 जुलाई, 2024 को केंद्रीय राज्य मंत्री, विधि एवं न्याय मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल को ई-मेल और ट्विट के माध्यम से एक पत्र लिखा है। अपने पत्र में समिति ने केंद्रीय कानून मंत्री से महाराष्ट्र और कर्नाटक के अंधविश्वास विरोधी और काला जादू (रोकथाम) अधिनियम की तर्ज पर एक राष्ट्रीय कानून बनाये जाने की मांग की है।केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को भेजे पत्र में सन्तोष शर्मा ने कहा, युक्तिवादी समिति वर्ष 1985 से पश्चिम बंगाल में अंध-विश्वास और कथित अंधिआस्था के नाम पर जनता को ठगने वाले तांत्रिकों, बाबाओं, ज्योतिषियों के खिलाफ लगातार जागरुकता अभियान चला रही। ऐसे में संस्था चाहती है कि, महाराष्ट्र और कर्नाटक के अंधविश्वास विरोधी और काला जादू (रोकथाम) अधिनियम की तर्ज पर देश में एक कानून बने।आपको ज्ञात होगा, उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई त्रासदी, जहां नारायण साकार हरि उर्फ स्वयंभू ‘भोले बाबा’ द्वारा आयोजित सत्संग के दौरान भगदड़ में सौ से अधिक लोगों की जान चली गई। इस घटना पर युक्तिवादी समिति संवेदना व दुख जताती है। यह घटना धार्मिक समारोहों के दौरान अव्यवस्था के कारण उपजने वाले खतरों को रेखांकित करती है।युक्तिवादी समिति की मांग है कि हाथरस भगदड़ की घटना में मुख्य अभियुक्त नारायण साकार हरि उर्फ ‘भोले बाबा’ समेत अन्य अभियुक्तों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए निर्देश दिये जाये।उन्होंने आगे कहा, बहुत सी जगहों पर हाथरस जैसे हादसे हो रहे हैं और हो सकते है। भविष्य में हाथरस जैसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक के अंधविश्वास विरोधी और काला जादू (रोकथाम) अधिनियम की तर्ज पर देश में एक कानून बनाये जाने की जरूरत है।यहां उल्लेखनीय है कि यूपी के हाथरस में हुई भगदड़ की घटना के बाद देश में एक राष्ट्रीय अंधविश्वास विरोधी कानून की जरूरत पर नये सिरे से चर्चा शुरू हो गयी है। हाथरस जैसी घटना अंध-विश्वास और अनियमित धार्मिक समारोहों के खतरों को रेखांकित करती है, जहां लोग आशीर्वाद लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं, जिसके कारण भीड़भाड़ हो जाती है और हाथरास जैसी भगदड़ की घटना हो जाती है।दूसरी ओर, पिछले बुधवार को हाथरस में भगदड़ में मरने वालों के प्रति राज्यसभा ने शोक व्यक्त किया। राज्यसभा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताते हुए शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसे मामलों से निपटने के लिए देश व्यापी अंधविश्वास विरोधी विशेष कानून बनाये जाने की मांग की।खड़गे ने कहा कि कई जगहों पर हाथरस जैसे हादसे हो रहे हैं, अंधविश्वास पर लोग चलते हैं। इसके लिए कोई देश में विशेष कानून नहीं है। ऐसे सत्संग कितनी क्षेत्र में होना चाहिए, कहां पर होना चाहिए, वहां पहुंच क्या है, आसपास अस्पताल कहां है, यह सब तय होना चाहिए। अंधविश्वास में बिना कुछ सोचे समझे लोग चले जाती हैं। यह बड़ा हादसा हुआ है। हाथरस की घटना में 121 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी। ऐसी घटना को रोकने के लिए अंध विश्वास विरोधी कानून बनाया जाये। हालांकि इस बीच बहुत से पाखंडी और ढोंगी बाबा अब जेल में हैं।
उन्होंने कहा ऐसे ढोंगी बाबाओं पर महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा के खिलाफ कानून बना है। कर्नाटक में भी कानून बने हैं। मैं विनती करता हूं इसी तर्ज पर देशव्यापी कानून बनाएं। जो सच्चे लोग हैं, उन्हें आने दो, नकली लोग पैसे के लिए बहुत जगह आश्रम बनाकर लोगों को लूट रहे हैं। मैं विनती करता हूं कि इस विषय पर केंद्रीय गृहमंत्री का वक्तव्य सदन में होना चाहिए।ज्ञान-विज्ञान के विकास के वाबजूद देश में ढोंगी व पाखंडी बाबाओं की सूची दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे बाबाओं के पास करोड़ों की संपत्ति हुआ करती है। कई अपराधी कानून से बचने के लिए खुद को भगवान का भेष धारण कर लेते हैं और बाबा साकार विश्वहारी इसका एक उदाहरण हैं।वहीं दूसरी ओर इस संदर्भ में देश के प्रमुख अंधविश्वास विरोधी नेताओं में से एक, तर्कवादी विचारक, राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दिव्यज्योति सैकिया ने तर्कवादी समिति की मांग का समर्थन किया है। उन्होंने भी केंद्र सरकार से इसके खिलाफ उचित कदम उठाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आज के सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में इसकी रोकथाम की जानी चाहिए। डॉ. दिव्यज्योति सैकिया एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने असम विच हंटिंग 2015 के लिए लड़ाई लड़ी और इसे असम विधानसभा में पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह लंबे समय से पूरे भारत में अंधविश्वास और जादू-टोना के खिलाफ काम कर रहे हैं।उधर तर्कवादियों का गंभीर आरोप है कि सब कुछ जानने के बाद भी पुलिस-प्रशासन चुप्पी साधी रहती है। बाबाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। वजह, सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को धार्मिक प्रतिक्रिया का डर है। यह भी तर्क दिया जाता है, कई मामलों में इन कथित बाबाओं को राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। यहां तक कि कई राजनीतिक नेता-मंत्री भी उनके अनुयायी बने रहेत हैं।ऐसी स्थिति में पुलिस व प्रशासन शिकायत के बाद भी ऐसे पाखंडी बाबाओं के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करने से डरता है। इसलिए ये बाबा तब तक फलते-फूलते रहते हैं, जब तक कि यूपी के हाथरस में सूरज पाल उर्फ साकार विश्व हरि भोले बाबा द्वारा आयोजित धार्मिक समागम में हुई भगदड़ जैसी कोई गंभीर घटना नहीं हो जाती, शायद प्रशासन की गहरी नींद तभी खुलती है जब हाथरस जैसी कोई दुर्घटना होती है।मालूम हो कि देश के 8 राज्यों में अंधविश्वास और जादू-टोने से संबंधित मामलों से निपटने के लिए कानून लागू है। कर्नाटक में साल 2020 में अंधविश्वास विरोधी कानून लाया गया। महाराष्ट्र में भी एंटी सुपरस्टीशन एंड ब्लैक मैजिक एक्ट 2013 लागू किया गया।वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भी महाराष्ट्र और कर्नाटक के अंधविश्वास विरोधी और काला जादू (रोकथाम) अधिनियम की तर्ज पर एक कानून बनाये जाने की मांग उठी है। ऐसी स्थिति में युक्तिवादी समिति ने केंद्रीय कानून मंत्री को पत्र लिखकर देश व्यापी अंध विश्वास विरोधी कानून बनाये जाने की मांग की है।