उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद. : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा वैवाहिक रिश्ते में दुराचार जैसे शब्द की कोई जगह नहीं है। बालिग पत्नी बनाए गए यौन संबंध को दुष्कर्म नहीं कह सकती, वह चाहे प्राकृतिक हो या फिर अप्राकृतिक। इस संबंध के लिए पति को न दोषी माना जा सकता है न दंडित किया जा सकता है। यह महत्वपूर्ण टिप्पणी न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एक पीठ ने पत्नी से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और दहेज उत्पीड़न के आरोपों के लिए जेल में सजा भोग रहे एक पति को दोषमुक्त करते हुए की। मामला गाजियाबाद के लिंकरोड थाने का है। वर्ष 2012 में आरोपी की शादी हुई, इसके बाद पत्नी ने वर्ष 2013 में पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाते हुए दहेज उत्पीड़न और अप्राकृतिक यौन शौषण का आरोप लगाया। परीक्षण न्यायालय से पति को तीन साल के कारावास और तीस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। सजा के खिलाफ पति ने अपील दाखिल की, जो आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निचली अदालत ने दहेज के आरोपों से मुक्त किया लेकिन अप्राकृतिक यौन शौषण के आरोप में सुनाई गई सजा को बरकरार रखा। अपीलीय अदालत के फैसले को आरोपी पति ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका के जरिए चुनौती दी। इस बीच आरोपी को मिली जमानत पत्नी की अर्जी पर खारिज हुई और पति को फिर से जेल जाना पड़ा। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एकल पीठ ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि यदि पत्नी बालिग है तो पति को इस तरह के आरोप में दंडित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वर्तमान समय में भारतीय दंड संहिता में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। कोर्ट ने जेल में बंद पति को पत्नी के अप्राकृतिक यौन शौषण के आरोप से बरी करते हुए कहा कि इस देश में अभी तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है। चूंकि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली तमाम याचिकाएं अभी भी उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं। ऐसे में जब तक शीर्ष अदालत इस मामले में कोई फैसला नहीं कर देती, तब तक बालिग पत्नी से बनाए गए अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए पति को दंडित नहीं किया जा सकता।
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